शेयर बाजार में इन्वेस्टिंग और ट्रेडिंग को लेकर पिछले 4-5 वर्षों में लोगों का रुझान तेजी से बढ़ता जा रहा है। लेकिन, शेयर मार्किट के बारे में जानकारी नहीं बढ़ी है, इसलिए निवेशकों ने स्टॉक मार्केट मेंबूत ज्यादा नुकसान उठाया है। आमतौर पर रिटेल निवेशकों की एक ही शिकायत रहती है कि हमने शेयर खरीदा और भाव गिरने लगा या जब हमने शेयर बेच दिया, फिर भाव बढ़ने लगा। हमर साथ ऐसा क्यों होता है।
बात ये है कि आखिर इस बात का अंदाजा कैसे लगाया जाए कि किसी शेयर का भाव भविष्य में गिरेगा या बढ़ेगा। आपने मार्केट एक्सपर्ट्स को अक्सर यह कहते हुए सुना होगा कि फलां स्टॉक में तेजी है इसे खरीद लो और इस शेयर का भाव गिर सकता है, बेच दो। क्या आपको पता है इस बात का अंदाजा एक्सपर्ट्स कैसे लगाते हैं? आइये जानते हैं तरीका?
शेयर बाज़ार के एनालिसिस को दो भाग में विभाजित किया गया है। फंडामेंटल एनालिसिस (fundamental analysis) और तकनीकी एनालिसिस (technical analysis), इसके लिए हमें टेक्निकल एनालिसिस और फंडामेंटल एनालिसिस की जानकारी होना जरूरी है।
Fundamental analysis, Technical analysis
जब कोई व्यक्ति शेयर बाज़ार में निवेश करने के इरादे से शेयर बाज़ार का एनालिसिस करता है, तो वह पहले कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस करता है। फंडामेंटल एनालिसिस करने वाला निवेशक देखता है कि कंपनी क्या काम करती है, कंपनी किस प्रकार से रुपए कमाती है, कंपनी को ऊंचाई पर ले जाने की क्या योजनाए हैं, कंपनी की ग्रोथ रेट क्या है, कंपनी की वैलुएसन क्या है। इसके साथ-साथ ROE, ROEC के बारे में जानकारी लेता है। यदि निवेशक को कंपनी का फंडामेंटल पसंद आता है तब वह उस कंपनी के शेयर का तकनिकी विश्लेषण या टेक्निकल एनालिसिस करता है |
किसी भी शेयर की चाल टेक्निकल एनालिसिस और भविष्य फंडामेंटल एनालिसिस द्वारा पता चलती है। जहां टेक्निकल एनालिसिस में चार्ट के जरिए शेयर के प्राइस एक्शन को समझा जाता है, वहीं फंडामेंटल एनालिसिस में कंपनी की वित्तीय स्थिति को देखते हुए भविष्य में उसके शेयरों के भाव का अंदाजा लगाया जाता है। खरीदी से पहले वॉल्युम, प्राइस एक्शन और अन्य इंडिकेटर पर गौर करना जरूरी है।
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प्राइस एक्शन क्या है
किसी शेयर को खरीदने से पहले उसके रेट पर गौर किया जाता है। शेयर की कीमत बढ़ेगी या घटेगी इसका निर्धारण टेक्निकल चार्ट देखकर किया जा सकता है। चार्ट में शेयर के प्राइस एक्शन को समझना जरूरी है। प्राइस एक्शन का तात्पर्य शेयर के भाव में होने वाले उतार-चढ़ाव से है। प्राइस एक्शन में Support और Resistance दोनों अहम फैक्टर होते हैं। सपोर्ट यानी वह लेवल जिस रेट पर कोई शेयर बार-बार सपोर्ट लेकर फिर से ऊपर जाता है। वहीं, रेजिस्टेंस वह लेवल, जहां किसी शेयर का भाव वापस नीचे आ रहा है।
किसी कंपनी का शेयर जब एक लेवल से दो या दो से अधिक बार टच कर वापस ऊपर चला जाता है तो इसे उस कंपनी के शेयर का सपोर्ट कहा जाता है | यह हमेशा कंपनी के शेयर प्राईस से निचे होता है | इसी प्रकार जब किसी कंपनी का शेयर किसी एक निश्चित लेवल से टकराकर दो या दो से अधिक बार वापस निचे आ जाये तो इस लेवल को रेजिस्टेंस लेवल कहा जाता है यह हमेशा कंपनी के शेयर प्राईस से ऊपर होता है। किसी शेयर में सपोर्ट और रेजिस्टेंस लेवल का निर्धारण करने के लिए टेक्निकल चार्ट पर डेली, वीकली और मंथली टाइम फ्रेम पर स्टॉक का भाव देखें। इससे यह जानने की कोशिश करें कि किस भाव पर जाकर शेयर में खरीदारी और बिकवाली हो रही है, इन्हें सपोर्ट और रेजिस्टेंस के तौर पर लें। चलिये Support और Resistance एक उदाहरण से जानते हैं।
Support और Resistance उदाहरण
मान लीजिये किसी शेयर का भाव फिलहाल 300 रुपये है। टेक्निकल चार्ट देखने पर जानकरी मिलती है कि 190 रुपये के भाव पर शेयर एक मजबूत Support दिखा रहा है। वहीं 300 रुपये के स्तर पर शेयर में Resistance देखने को मिल रहा है। ऐसी स्थिति में मौजूदा लेवल यानी 300 रुपये पर शेयर को खरीदना समझदारी नहीं होगी। कोशिश यह होनी चाहिए कि सपोर्ट के आसपास यानी अगर शेयर का भाव फिर से 190-200 रुपये पर आता है तो इस स्टॉक को खरीदना चाहिए। अगर शेयर अपने रेजिस्टेंस यानी 300 रुपये के लेवल तक जाता है तो मुनाफा ले लेना चाहिए।
अगर यह शेयर चार्ट अपने अहम सपोर्ट 190 रुपये के स्तर को तोड़ता है तो इसे ना खरीदें, क्योंकि इससे शेयर में और गिरावट होने की आशंका बढ़ जाती है। लेकिन, इसके विपरीत अगर यह शेयर 300 रुपये के अपने रेजिस्टेंस के पार जाता है, तो शेयर के भाव में तेजी आने की प्रबल संभावना रहती है। इसलिए प्राइस एक्शन थ्योरी को ब्रेकआउट और ब्रेकडाउन महत्व दिया जाता है।
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ब्रेकआउट और ब्रेकडाउन
यहां ब्रेकआउट से मतलब जब कोई शेयर अपने रेजिस्टेंस को तोड़कर ऊपर जाता है। वहीं, ब्रेकडाउन यानी स्टॉक अपने सपोर्ट को तोड़कर नीचे जाता है। यदि कीमत प्रतिरोध को पार करके रेखा के दूसरी ओर जाती है, तो इसे ब्रेकआउट कहा जाता है। इसका विपरीत ब्रेकडाउन है। मान लीजिए कि इस शेयर में कोई सपोर्ट लेवल है। प्राइस एक्शन में वॉल्युम को भी अहम माना जाता है। वॉल्युम से मतलब शेयरों में होने वाली खरीदी-बिक्री की संख्या से होता है।
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